शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

क्या हुआ जो मातम का मंजर है !

(फोटो गूगल से साभार)
 
जमीन जो कभी
हरी भरी थी
फसलों से
अब बंजर है
किसान जो बोया करता  था
उन फसलों को
घर में उसके
मातम जैसा मंजर है
किसी दैनिक के
पांचवे पृष्ठ पर
यह खबर छपी है
और पहले पन्ने पर
प्रधानमंत्री की
उद्योगपतियों संग
एक बड़ी तस्वीर लगी है
साथ में है
ख़बरें राजनीति क्रिकेट और ग्लैमर
बिक रहा बाजार में यह
देखो कैसे धड़ा धड़ !



20 टिप्‍पणियां:

  1. किसान जो बोया करता था
    उन फसलों को
    घर में उसके
    मातम जैसा मंजर है .....
    --------------------------------
    एकदम सच कहा आपने .... बढ़िया प्रस्तुति

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  2. आज का यथार्थ...बहुत सुन्दर

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  3. आदमी आदमी में फर्क जो सीख लिया गया है ..हाशिया पर चलने वाले ....एक कटु सच ..

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  4. That is the sad state of our country ... issues that need proper attention never show up !!!

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  5. यथार्थ को दर्शाती सुन्दर रचना।

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  6. आज की सच्चाई दिखाती बहुत सुंदर संवेदनशील अभिव्यक्ति,,,
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    recent post: गुलामी का असर,,,

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  7. अच्छा है जो बाज़ार जैसी है ये दुनिया,
    कोई बेच दे उस गरीब को भी, तो करार आये...

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  8. आप शाकाहारी हैं या निरामिष बोले तो मांसाहारी इसका आज कोई मतलब नहीं है ,ज़रूरी है आप निर्भया का सम्मान करें .आप भाई साहब शाकाहारी हैं तो वैसे हो रहें जैसे हैं .असल बात है औरत का सम्मान करना .

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  9. दोस्त आप बहुत सटीक हैं .यथार्थ के करीब हैं .बधाई इस खूबसूरत तंज के लिए .आप आये मन भाये .

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  10. Wow. Very fine, fine vol meaningful presentation. Heartfelt gratitude I have seen your blog and keep his thoughts makes us aware.

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  11. मजदूर और किसान की पीड़ा समाज की पीड़ा है..मार्मिक रचना..

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  12. bahut sunder kavita........ek aise sach ko darshati jisse hum anbigya hai..........

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