सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

माँ तेरा बचपन देख आया हूँ !

(फोटो गूगल से साभार)



माँ तेरा बचपन देख आया हूँ 
माँ तुझे खेलता देख आया हूँ 
मैंने देखा तुम्हें 
अपनी माँ की गोद में रोते 
देखा तुम्हें थोड़ा बड़ा होते 
मिटटी सने हाथ देखे तुम्हारे 
खिलौने भरे हाथ देखे तुम्हारे 
तुम्हारी मासूम हँसी देखी 
तुम्हारा रोना देखा 
पापा का तुमपर बरसता प्यार देखा 
माँ का तुम्हारे लिए दुलार देखा 
तुम्हें पग पग बढ़ते देखा 
मेंहदी लगे तेरे हाथों में 
शादी के जोड़े में 
सजा श्रृंगार देखा 
आँखों में विदाई की पीड़ा 
माँ पापा भाई बहन अपनों से 
दूर जाने की पीड़ा 
तेरा अलग बनता एक संसार देखा 
तुम्हारी नयी दुनिया देखी 
पराये थे जो कल तक 
उनके लिए अपनेपन का भाव देखा 
लाखों दर्द छुपाए 
जिम्मेदारियों को ढोने का अंदाज देखा
ससुराल में रहकर भी  
मायका के लिए अटूट प्यार देखा 
माँ फिर मैंने खुद को देखा 
तुम्हारी गोद में 
तुम्हारी ममतामयी गोद में
तुम्हें मुझे खिलाते हुए  
और माँ 
अब तुम मुझे देख रही हो 
खेलते हुए 
बड़े होते हुए 
बूढ़े होते हुए 




गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

रश्मि प्रभा मैडम के जन्मदिन पर!

आज की यह पोस्ट आदरणीया रश्मि प्रभा मैडम के जन्मदिवस पर है।  उनके लिए कुछ भी लिखना बहुत ही कम है । बस मेरा मन हुआ और मैंने एक छोटी सी कविता लिखी । किसी भी त्रुटि या गलती के लिए क्षमा चाहूँगा । हमसभी की तरफ से उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ ! :-)

(फोटो गूगल से साभार)


नभ से एक किरण उतरी 
धरती के हरित पटल पर
बीज बनी वह 'रश्मि' 
बन पौध उगी वहीं पर 

प्रेम स्नेह की बारिश में 
कवि पंत के आशीष तले 
वो नव नित पल्लवित हुई 
अनगिन किरणों की आभा ओढ़े 
वटवृक्ष सी विस्तृत हुई

नहीं बंधी कभी भी वह 
तम के घोर अंधेरों से 
लेकिन बंध जाती है खुद वो 
प्रेम भाव के डोरों से 

मानव हित और मूल्यों की रक्षा 
करने को वह खड़ी तत्पर हैं 
विशाल हृदयी वो सहृदयी 
सारा जग ही उनका घर है 

कवि पंत की मानस पुत्री 
को करता मन नमस्कार 
आप रहे दीर्घायु स्वस्थ प्रसन्न सदा  
मिलता रहे सबका स्नेह और प्यार


शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं

(फोटो गूगल से साभार)


आँधियों में अक्सर पत्ते टूट जाते हैं 
खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं 

डूब जाता है सूरज दिन के किनारे पर 
चाँद तो अक्सर रात में ही देखे जाते हैं 

हर राह हो फूलों से सजा जरुरी नहीं 
काँटों से होकर भी मंजिल को पाते हैं  

क्या कुछ नहीं निकलता है  मंथन से 
भोले हैं वो जो विष पीकर भी जी जाते हैं

जमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं 
उड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं 




मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

गीत: माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे

(फोटो: गूगल से साभार)


माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 
विपदा बड़ी है हरो कष्ट सारे 

तू बुद्धि दात्री, ज्ञान समंदर
वीणा वादिनी, झंकृत हर स्वर
ताप मिटे अब हर मन का 
माँ ऐसी हम पर कृपा तू कर
शीश झुकाए हम खड़े हैं, 
आश लिए दर्शन को तिहारे  
माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 

हम निर्बुद्धि हम अज्ञानी 
बालक नादान करते नादानी
ज्ञान की अमृत हमें पिलाओ 
चले राह सही सदा  
दे बुद्धि ऐसी माँ वीणा पाणि 
मैहर वाली माता रानी 
तेरा बालक तुझे पुकारे 
माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे

माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 
विपदा बड़ी है हरो कष्ट सारे  


आपसभी को वसंत पंचमी की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !

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